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Nirala Ki Sahitya Sadhana-V-1 (Hindi Edition)

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Nirala Ki Sahitya Sadhana-V-1 (Hindi Edition)

Ram Vilas Sharma
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निराला की पुत्री सरोज का देहान्त सन् 35 में हुआ। उसकी प्रतिक्रिया: “उन्होंने न एक भी आंसू गिराया, न एक भी शब्द कहा। कुछ देर कमरे में चक्कर लगाते रहे। फिर कुर्ता पहना, छड़ी उठाई और घर से बाहर निकल गये।”

जयशंकर प्रसाद का देहान्त सन् 37 में हुआ। उसकी प्रतिक्रिया: “निराला ने समाचार सुना और कुछ न कहा … निराला के मन में जैसे शून्य समा गया, उनका भावस्रोत मानों जड़ हो गया।”

इन दोनों मृत्युओं को मिलाकर एक साथ देखना चाहिए। इससे निराला के दु:ख की गहराई का अनुमान होगा, उस पर काबू पाने और कविता लिखते रहने के लिए उन्होंने कैसा विकट संघर्ष किया था, इसका अनुमान होगा। सरोज पर कविता लिखने की बात उन्होंने उसकी मृत्यु के तुरंत बाद ही सोच ली होगी। ‘सरोज स्मृति’ के अंत में तारीख दी है — 9-10-35। निश्चय ही यह लंबी कविता एक दिन में न लिखी गयी होगी, तैयारी में भी समय लगा होगा; कविता जब पूरी हुई उस दिन की तारीख डाली होगी। प्रसाद पर कविता उन्होंने काफी समय बाद लिखी। ‘आदरणीय प्रसादजी के प्रति’ के अंत में सन् दिया है— 1940।

प्रसाद की मृत्यु पर निराला की तात्कालिक प्रतिक्रिया उनके एक पत्र से ज़ाहिर होती है। जिस घर से सरोज की अनंत स्मृतियां जुड़ी थीं, वहीं से प्रसाद के पुत्र रत्नशंकर को ढाढ़स बँधाते हुए उन्होंने पत्र लिखा था। लिखा थोड़ा जानना बहुत का नमूना वह पत्र इस प्रकार है:

類別:
年:
1990
出版商:
Rajkamal Prakashan
語言:
hindi
頁數:
1070
ISBN 10:
8126716959
ISBN 13:
9788126716951
文件:
EPUB, 4.68 MB
IPFS:
CID , CID Blake2b
hindi, 1990
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